छत्तीसगढराज्य

Special Article on World Tribal Day : आदिवासी अंचल के जनजीवन में बदलाव की बयार

रायपुर, 8 अगस्त। Special Article on World Tribal Day : छत्तीसगढ़ और आदिवासी एक-दूसरे के पर्याय हैं। छत्तीसगढ़ के वन और यहां सदियों से निवासरत आदिवासी राज्य की पहचान रहे हैं। प्रदेश के लगभग आधे भू-भाग में जंगल है, जहां छत्तीसगढ़ की गौरवशाली आदिम संस्कृति फूलती-फलती रही है।

आज से साढ़े तीन साल पहले नवा छत्तीसगढ़ के निर्माण का संकल्प लेते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासियों को उनके सभी अधिकार पहुंचाने की जो पहल शुरू की जिससे आज वनों के साथ आदिवासियों का रिश्ता एक बार फिर से मजबूत हुआ है और उनके जीवन में नई सुबह आई है। राज्य में 42 अधिसूचित जनजातियों और उनके उप समूहों का वास है। प्रदेश की सबसे अधिक जनसंख्या वाली जनजाति गोंड़ है जो सम्पूर्ण प्रदेश में फैली है। राज्य के उत्तरी अंचल में जहां उरांव, कंवर, पंडो जनजातियों का निवास हैं वहीं दक्षिण बस्तर अंचल में माडिया, मुरिया, धुरवा, हल्बा, अबुझमाडिया, दोरला जैसी जनजातियों की बहुलता है।

छत्तीसगढ़ में निवासरत जनजातियों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत (Special Article on World Tribal Day) रही है, जो उनके दैनिक जीवन तीज-त्यौहार एवं धार्मिक रीति-रिवाज एवं परंपराओं के माध्यम से अभिव्यक्त होती है। बस्तर के जनजातियों की घोटुल प्रथा प्रसिद्ध है। जनजातियों के प्रमुख नृत्य गौर, कर्मा, काकसार, शैला, सरहुल और परब जन-जन में लोकप्रिय हैं। जनजातियों के पारंपरिक गीत-संगीत, नृत्य, वाद्य यंत्र, कला एवं संस्कृति को बीते साढ़े तीन सालों में सहेजने-संवारने के साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार ने विश्व पटल पर लाने का सराहनीय प्रयास किया है।

अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का भव्य आयोजन इसी प्रयास की एक कड़ी है। प्रदेश सरकार द्वारा आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान रायपुर में संग्रहालय की स्थापना वास्तव में आदिवासियों की समृद्ध कला एवं संस्कृति और उनके जीवन से सदियों से जुड़ी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का प्रयत्न है। छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद श्री वीरनारायण सिंह की स्मृति में लगभग 25 करोड़ 66 लाख रूपए की लागत से 10 एकड़ भूमि में स्मारक-सह-संग्राहलय का निर्माण नवा रायपुर अटल नगर में पुरखौती मुक्तांगन में किया जा रहा है। इसमें प्रदेश के जनजातीय वर्ग के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का जीवंत परिचय प्रदेश और देश के शोध छात्र और आम जनों को हो सकेगा।

छत्तीसगढ़ राज्य के 28 जिलों में से 14 जिले संविधान की 5वीं अनुसूची में पूर्ण रूप से और छह जिले आंशिक रूप से शामिल हैं। राज्य के आदिवासी समुदाय का लिंगानुपात सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं वरन् देश के लिए अनुकरणीय है। इस समुदाय में एक हजार पुरूष पर 1013 महिलाओं की स्थिति लिंगानुपात को लेकर सुखद एहसास है। छत्तीसगढ़ सरकार आदिवासी क्षेत्रों और वहां के जनजीवन को खुशहाल और समृद्ध बनाने के लिए प्रयासरत है। यही वजह है कि आदिवासियों का भरोसा व्यवस्था में कायम हुआ है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है लोहण्ड़ीगुड़ा में किसानों की जमीन की वापसी, तेंदूपत्ता संग्रहण दर को 2500 रूपए प्रति मानक बोरा से बढ़ाकर 4 हजार रूपए प्रति मानक बोरा करके, 65 प्रकार के लघु वनोपज की समर्थन मूल्य पर खरीदी एवं वेल्यू एडीशन करके हमने न सिर्फ वनवासियों की आय में बढ़ोत्तरी की है, बल्कि रोजगार के अवसरों का भी निर्माण किया है। छत्तीसगढ़ सरकार आदिवासी समुदाय के जुड़े हर मसले को पूरी संदेवनशीलता और तत्परता से निराकृत करने के साथ ही उनकी बेहतरी के लिए कदम उठा रही है।

वनवासियों को वन भूमि का अधिकार पट्टा देने के मामले में छत्तीसगढ़ देश का अग्रणी राज्य है। अब तक राज्य में 4 लाख 54 हजार से अधिक व्यक्तिगत वनाधिकार पत्र, 45,847 सामुदायिक वन तथा 3731 ग्रामसभाओं को सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र वितरित कर 38 लाख 85 हजार हेक्टेयर से अधिक की भूमि आवंटित की गई है, जो 5 लाख से अधिक वनवासियों के जीवन-यापन का आधार बनी है।

वन अधिकार पट्टाधारी वनवासियों के जीवन को आसान बनाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा उनके पट्टे की भूमि का समतलीकरण, मेड़बंधान, सिंचाई की सुविधा के साथ-साथ खाद-बीज एवं कृषि उपकरण भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। वन भूमि पर खेती करने वाले वनवासियों को आम किसानों की तरह शासन की योजनाओं का लाभ मिलने लगा है। वनांचल में कोदो-कुटकी, रागी की बहुलता से खेती करने वाले आदिवासियों को उत्पादन के लिए प्रति एकड़ 9 हजार रूपए की इनपुट सब्सिडी देने का प्रावधान राजीव गांधी किसान न्याय योजना के अंतर्गत किया गया है।

राज्य में पहली बार कोदो-कुटकी की तीन हजार तथा रागी की 3377 रूपए प्रति क्विंटल की दर से कुल 16 करोड़ 58 लाख रूपए की खरीदी की गई। कोदो-कुटकी, रागी जैसी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने और वैल्यु एडिशन के माध्यम से किसानों की आय में बढ़ोत्तरी के लिए मिशन मिलेट शुरू किया गया है। वनोपज का आदिवासियों के जीवन से बड़ा ही गहरा ताल्लुक रहा है। बिचौलियों से सरकार ने अब वनवासियों को मुक्ति दिला दी है।

बस्तर अंचल के तेजी से विकास के लिए नियमित हवाई सेवा शुरू की गई है। जगदलपुर एयरपोर्ट आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध करायी गई हैं। इस एयरपोर्ट का नामकरण बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के नाम पर किया गया है। अंबिकापुर में शीघ्र हवाई सेवा शुरू करने के लिए दरिमा स्थित मां महामाया एयरपोर्ट में हवाई पट्टी का विस्तार शुरू कर दिया गया है। बीजापुर से बलरामपुर तक सभी अस्पतालों में अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित किया गया है।

इन अस्पतालों में प्रसुति सुविधा, जच्चा बच्चा देखभाल सहित पैथालाजी लेब और दंतचिकित्सा सहित विभिन्न रोगों के उपचार और परीक्षण की सुविधाएं उपलब्ध करायी गई है। हाट-बाजारों में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लिनिक योजना में मेडिकल एम्बुलेंस के जरिए दुर्गम गांवों तक निःशुल्क जांच और उपचार की सुविधा के साथ दवाईयों का वितरण किया जा रहा है। मलेरिया के प्रकोप से बचाने के लिए बस्तर संभाग में विशेष अभियान चलाया गया, जिससे बस्तर अंचल में अब मलेरिया का प्रकोप थम सा गया है।

सुकमा जिले के धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र जगरगुण्डा सहित 14 गांवों की एक पूरी पीढ़ी 13 वर्षों से शिक्षा से वंचित थी अब यहां स्कूल भवनों की मरम्मत कर दी गई है। बीजापुर और बस्तर संभाग के जिलों में भी सैकड़ों बंद स्कूलों को फिर से प्रारंभ किया गया है। वर्तमान में प्रदेश में 9 प्रयास आवासीय विद्यालय संचालित हैं, जहां से शिक्षा प्राप्त 97 विद्यार्थी आईआईटी, 261 विद्यार्थी एनआईटी एवं ट्रिपल आईटी, 44 विद्यार्थी एमबीबीएस तथा 833 विद्यार्थी इंजीनियरिंग कॉलेजों में एडमिशन प्राप्त कर तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। राज्य में 73 एकलव्य आवासीय विद्यालय संचालित हैं। शैक्षणिक सत्र 2022-23 में एकलव्य विद्यालयों में 18 हजार 984 विद्यार्थी अध्ययनरत है।

बस्तर अंचल के (Special Article on World Tribal Day) लोहांडीगुड़ा के 1707 किसानों की 4200 हेक्टेयर जमीन जो एक निजी इस्पात संयंत्र के लिए अधिगृहित की गई थी। यह भूमि किसानों को लौटा दी गई है। बस्तर संभाग के जिलों में नारंगी वन क्षेत्र में से 30 हजार 429 हेक्टेयर भूमि राजस्व मद में वापस दर्ज की गई है। इससे बस्तर अंचल में कृषि, उद्योग, अधोसंरचना के निर्माण के लिए भूमि उपलब्ध हो सकेगी। आजादी के बाद पहली बार अबूझमाड़ क्षेत्र के 2500 किसानों को मसाहती पट्टा प्रदान किया गया है। अबूझमाड़ के 18 गांवों का सर्वे पूरा कर लिया गया है, दो गांवों का सर्वे जारी है।

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