राष्ट्रीय

रोंगटे खड़े कर देती है केदारनाथ त्रासदी की यादें, हजारों को बहा ले गई थी मंदाकिनी

नई दिल्‍ली, 16 जून। वो 16 और 17 जून 2013 की दरमियानी रात थी। उत्‍तराखंड के लोग अपने घरों में थे, क्‍योंकि 13 जून से लगातार भारी बारिश हो रही थी। घाटी के शांत माहौल में एकदम से कोलाहल ने सबको चौंका दिया। कुछ लोग अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित स्‍थानों की ओर भाग रहे थे। कुछ ही समय में पूरी घाटी में मंदाकिनी नदी का पानी भर गया। किसी ने सोचा भी नहीं था कि मंदाकिनी नदी इतना विकराल रूप धारण कर लेगी कि अपने रास्‍ते में आने वाले घरों, रेस्‍तरां और लोगों को बहा ले जाएगी। सुबह पूरा देश शोक में डूब गया। केदरनाथ यात्रा के लिए देश के अलग-अलग राज्‍य से आए हजारों लोगों का कोई अता-पता नहीं था। इस त्रासदी में लापता हुए लोगों के रिश्‍तेदार आज भी अपनों का इंतजार कर रहे हैं।

केदारनाथ त्रासदी को आठ साल गुजर गए हैं, लेकिन इसकी भयावह यादें अब भी रोंगटे खड़े कर देती है। 13 जून 2013 को उत्‍तराखंड में जबरदस्‍त बारिश शुरू हुई। इस दौरान वहां का चौराबाड़ी ग्लेशियर पिघल गया था, जिससे मंदाकिनी नदी का जलस्तर देखते ही देखते बढ़ने लगा। इस बढ़े हुए जलस्तर ने उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी नेपाल का बड़ा हिस्सा अपनी चपेट में ले लिया। तेजी से बहती हुई मंदाकिनी का पानी केदारनाथ मंदिर तक आ गया। इसके बाद पूरे क्षेत्र में जो तबाही हुई, उसके निशान आज भी केदारघाटी में नजर आते हैं। भारी बारिश के बीच मंदाकिनी नदी ने विकराल रूप दिखाया और हादसे में 6 हजार से ज्यादा लोग लापता हो गए थे। हालांकि, मारे जाने वालों का आधिकारिक आंकड़ा अब तक साफ नहीं। आज भी केदारघाटी में नरकंकाल मिलते रहते हैं। हजारों लोगों का अब तक कुछ पता नहीं चल पाया है।

दरअसल, केदारनाथ से निकलने वाली मंदाकिनी नदी के दो फ्लड वे(बाढ़ आने का रास्‍ता) हैं। कई दशकों से मंदाकिनी सिर्फ पूर्वी वाहिका में बह रही थी। ऐसे लोगों ने यह मान लिया कि अब मंदाकिनी बस एक धारा में बहती रहेगी। हालांकि, वैज्ञानिक नजरिया यह है कि यदि नदी में 100 साल में एक बार भी बाढ़ आई हो, तो उसके उस मार्ग को भी फ्लड वे माना जाता है। इसलिए इस मार्ग पर निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए। इस मार्ग पर कभी भी बाढ़ आ सकती है। यह साबित भी हो गया। जब मंदाकिनी में बाढ़ आई, तो वह अपनी पुराने मार्ग यानी पश्चिमी फ्लड वे में भी बढ़ी, जिससे उसके रास्ते में बनाए गए सभी निर्माण बह गए।

इस आपदा में फंसे लोगों को बचाने के लिए सेना को तुरंत भेजा गया। सेना के जवानों ने लाखों लोगों को रेस्क्यू किया गया। लगभग 110000 लोगों को सेना ने बचाया। इस दौरान काफी घर, होटल और रेस्‍तरा पानी में बह गए। लेकिन आठवीं सदी में बने केदारनाथ मंदिर को ज्‍यादा नुकसान नहीं पहुंचा। कई शोध संस्थानों ने ये समझने की कोशिश की कि आखिर इतनी विकराल आपदा में मंदिर कैसे सुरक्षित रहा? इसके पीछे कई कारण दिए गए, जिसमें मंदिर की भौगोलिक स्थिति को सबसे महत्‍वपूर्ण बताया गया।

उत्तराखंड के लोग इस प्रकृति की मार को झेलने के बाद धीरे-धीरे अपनी ज़िंदगी वापस पटरी ले आए हैं। नए निर्माण के बाद केदारघाटी भी अब पूरी तरह से बदल गई है। हालांकि, इस त्रासदी में जिन्‍होंने अपनों को खोया है, उनके जख्‍म शायद ही कभी भर पाएं।

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