विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा दें, जो उन्हें संस्कारवान बनाएं और नैतिक रूप से मजबूत बनाए: सुश्री उइके
रायपुर, 17 दिसंबर। शिक्षा प्रदान करना एक पुण्य का कार्य है। शैक्षणिक संस्थानों का उद्देश्य विद्यार्थियों को संपूर्ण शिक्षा प्रदान करना होना चाहिए, उसका केंद्र बिंदु व्यवसायिकता नहीं होना चाहिए। हम विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा दें जो उन्हें संस्कारवान बनाएं, नैतिक रूप से मजबूत बनाएं। यह बात राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने राजभवन में छत्तीसगढ़ निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग की वर्चुअल बैठक को संबोधित करते हुए कही। राज्यपाल ने कहा कि हर एक निजी विश्वविद्यालय अपनी गुणवत्ता बनाए रखे और विश्वसनीयता कायम रखें। वे अपने कार्यों के आधार पर ऐसी छवि बनाएं कि देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी विद्यार्थी पढ़ने के लिए हमारे प्रदेश आएं। बैठक में छत्तीसगढ़ निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग के अध्यक्ष डॉ. शिववरण शुक्ल ने भी अपना संबोधन दिया।
इस वर्चुअल बैठक के दौरान गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड के राष्ट्रीय प्रमुख श्री मनीष विश्नोई ने जानकारी दी कि छत्तीसगढ़ निजी विश्वविद्यालय विनियामक द्वारा आयोजित इस वेबिनार को वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज कर लिया गया है। उन्होंने कहा कि यह निजी विश्वविद्यालयों की पहली वर्चुअल बैठक थी, जो सुबह 9 बजे से 5 बजे तक चली और इसमें छत्तीसगढ़ के 15 निजी विश्वविद्यालय शामिल हुए। उन्होंने इसका वर्चुअल प्रमाण पत्र भी प्रदान किया। इसके लिए राज्यपाल ने आयोग और उनके अध्यक्ष श्री शुक्ल को बधाई दी।
बैठक को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि यह बड़ी खुशी की बात है कि पहली बार कोरोना काल में सारे निजी विश्वविद्यालयों के कार्यों और योगदान की समीक्षा की जा रही है। इसके लिए उन्होंने आयोग के अध्यक्ष डॉ. शिववरण शुक्ल तथा आयोग को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह अच्छी बात है कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में निजी विश्वविद्यालयों के आने से शिक्षा का विस्तार हुआ है। परंतु हम यह भी मंथन करें कि हम इस उद्देश्य में कहां तक सफल हो रहे हैं। हम शिक्षण संस्थानों का क्षेत्रीय विकेन्द्रीयकरण करंे तथा उनकी संरचना ऐसी निर्मित करें, जिससे एक सामान्य परिवार का बच्चा भी प्रवेश लेकर शिक्षा प्राप्त कर सके, उच्चतम वर्ग तक सीमित ना हो। हमारी नई शिक्षा नीति में भी जोर दिया गया है कि एक विद्यार्थी का संपूर्ण विकास हो।
राज्यपाल ने कहा कि हम ऐसे देश के निवासी हैं जहां पर गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थान जिसे हम शांति निकेतन के नाम से जानते हैं, ने ऐसा मानदंड स्थापित किया है कि पूरे विश्व से विद्यार्थीगण भी पढ़ने वहां आते हैं। वहां का वातावरण ही विद्यार्थियों में संस्कार रोपित करता है और उत्कृष्ट विद्यार्थी बनने को प्रेरित करता है। मेरा आग्रह है कि अपने शैक्षणिक संस्थान में भी ऐसा वातावरण बनाएं जो अध्ययनरत विद्यार्थियों में समाज के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण और राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत करें।
उन्होंने कहा कि हम नई शिक्षा नीति की बात करंे तो, ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’’ संपूर्ण रूप से शिक्षा के मानकों को स्थापित करने वाली है, इसके समस्त प्रावधान उच्च शिक्षा में गुणवत्ता, स्वायत्ता एवं छात्रों को बेहतर विकल्प प्रदान करते हुए शोध में नवाचार लाने में सहायक है। यह 21वीं सदी में देश की प्रथम शिक्षा नीति है, जो विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण एवं रोजगारोन्मुखी शिक्षा प्रदान करने और भारत को वैश्विक महाशक्ति तथा आत्मनिर्भर भारत बनने में सहायक होगी।
राज्यपाल ने सुझाव दिया कि विश्वविद्यालयों में आध्यात्मिक-नैतिक शिक्षा संबंधी पाठ्यक्रम प्रारंभ किया जाना चाहिए, जिससे नई पीढ़ी को पुरातन संस्कृति की जानकारी मिलेगी और उसे अपनी परंपराओं से जोड़े रखेगी। उन्होंने विश्वविद्यालयों में स्थानीय बोलियों, वन संसाधन और जड़ी-बुटियों के ज्ञान पर आधारित पाठ्यक्रम प्रारंभ करने का भी सुझाव दिया।
इस अवसर पर भारतीय विश्वविद्यालय संघ, नई दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष एवं मूर्धन्य शिक्षाविद् प्रोफेसर पी.वी. शर्मा, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पाण्डेय एवं मध्यप्रदेश निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग भोपाल के अध्यक्ष डॉ. भरतशरण सिंह और निजी विश्वविद्यालयों के कुलपतिगण एवं गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड की छत्तीसगढ़ प्रतिनिधि श्रीमती सोनल शर्मा वर्चुअल रूप से बैठक में उपस्थित थे।