छत्तीसगढ

अब ऑनलाइन क्लासेस में कोई भी निजी स्कूल नहीं ले सकेगा फीस

रायपुर, 17 जून। कोरोना से हुए लॉकडाउन के कारण विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित न हो इसलिए स्कूली शिक्षा विभाग ने ऑनलाइन पढ़ाई की शुरुआत किया, लेकिन कुछ निजी स्कूलों ने इसे फीस वसूलने का जरिया बना लिया था। इसके विरोध में छत्तीसगढ़ पैरेंटस एसोसिएशन के मोर्चा खोलने के बाद जिला शिक्षा अधिकारी को निर्देश जारी करना पढ़ा कि लॉकडाउन में ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान कोई भी निजी स्कूल फीस नहीं लेगा।

डॉ. कीर्ति चावड़ा, छत्तीसगढ़ पैरेंटस एसोसिएशन के प्रदेश सचिव का कहना है कि, करीब 3 माह से लॉकडाउन है। कइयों पेरेंट्स के काम छूट गए हैं, ऐसे स्थिति में निजी स्कूलों का पेरेंट्स पर स्कूल फीस जमा करने का दवाब था। अनेक परेंट्स इसकी शिकायत लेकर एशोसिएशन के पास आया। उनका कहना है कि आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे हैं उस पर स्कूलों फीस जमा करने का दबाव बना रहे हैं। इसी के मद्देनजर छत्तीसगढ़ पैरेंटस एसोसिएशन ने जिला शिक्षा अधिकारी को ज्ञापन सौंपा था। जिला शिक्षा विभाग से पेरेंट्स के फेवर में निर्णय आया है। निःसन्देह इस आदेश से सभी अभिभावकों को राहत मिली है।

प्रदेश प्रवक्ता व जिला अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ पैरेंटस एसोसिएशन के दिनेश शर्मा का कहना है कि ऑनलाइन क्लास में फीस वसूली को लेकर काफी समय से पेरेंट्स की शिकायत को लेकर हम प्रयास कर रहे थे। कोरोना संकट में वैसे ही अभिभावकों को आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे है। निजी स्कूल का काफी दवाब था। पेरेंट्स परेशान थे। उनके मोबाइल पर फीस के लिए मेसेज करना, नोटिस भेजना या धमकी देना कि उनके बच्चे को स्कूल से निकाल देंगे। इस परिस्थिति में ये बहुत गम्भीर मुद्दा था इसलिए हम जिला शिक्षा अधिकारी से मिलकर बोले कि कोई लिखित आदेश दे, ताकि स्कूलों पर लगाम कसा जा सके। जिला शिक्षा विभाग की त्वरित कार्यवाही हुई कि ऑनलाइन क्लासेस निःशुल्क रहेगी।

बाईट- दिनेश शर्मा, प्रदेश प्रवक्ता व जिला अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ पैरेंटस एसोसिएशन

विद्यार्थी कुसुमिता का कहना है कि पहले स्कूलों में फोन ले जाने की मनाही थी, लेकिन आज वहीं चीज स्कूलों ने कमाई का जरिया बना लिया। आज ऑनलाइन क्लासेस सिर्फ स्मार्टफोन से ही सम्भव है, ऐसे में कई विद्यार्थियों के पास स्मार्टफोन नहीं है। क्या पढ़ाई का अधिकार सिर्फ स्मार्टफोन वाले विद्यार्थियों को है, जिसके पास स्मार्टफोन नहीं है वो हकदार नहीं है।

आपको बता दें कि, तत्कालीन शिक्षा सचिव के. आर पिस्दा के हस्ताक्षरित 18 अप्रैल 2012 के सर्फुलर में यह स्पष्ट है की प्रत्येक निजी स्कूलों के द्वारा प्रति वर्ष अपना ऑडिट रिपोर्ट और निर्धारित फ़ीस का व्यौरा जिला शिक्षा अधिकारी को प्रस्तुत किया जाएगा। यदि स्कूल
जानकारी प्रदान नहीं करते हैं तो उनकी मान्यता रद्द कर दी जावेगी। तत्कालीन शिक्षा सचिव सुब्रत साहू द्वारा हस्ताक्षरित 22 अप्रैल 2016 के सर्कुलर में कहा गया है की प्रतिवर्ष पालकों की आम सहमति एवं जिला शिक्षा अधिकारी की उपस्थिति में निजी स्कूलों में फीस का निर्धारण किया जावेगा। यदि निर्धारण यथोचित रूप से नहीं किया गया है एवं समस्त पालक गण संतुष्ट नहीं है तो जिला शिक्षा अधिकारी इस हेतु समग्र रूप से उत्तरदायी होंगे।

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