छत्तीसगढ

कृषि प्रधान राज्य छत्तीसगढ़ के अस्तित्व परंपरा और ऐतिहासिक विरासत के लिए प्रसिद्ध…

रायपुर, 1 नवंबर। एक नवंबर 2000 को मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया था। साल 2000 में छत्तीसगढ़ को उसके मातृत्व राज्य मध्यप्रदेश से अलग किया गया था। छत्तीसगढ़ मूल रूप से कृषि प्रधान राज्य है। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा भी कहा जाता है। यह आदिवासी संस्कृति के साथ ही अनोखी परंपरा, ऐतिहासिक धरोहरों, पर्यटन स्थलों के लिए मशहूर है।

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छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है

छत्तीसगढ़ का इतिहास

  • 1 नवंबर 2000 को पूर्ण अस्तित्व में आया।
  • प्राचीन काल में इस क्षेत्र को ‘दक्षिण कौशल’ के नाम से जाना जाता था।
  • रामायण और महाभारत में भी उल्लेख मिलता है।
  • 6वीं और 12वीं शताब्दियों के बीच सरभपूरिया, पांडुवंशी, सोमवंशी, कलचुरी और नागवंशी शासकों ने यहां शासन किया।
  • साल 1904 में यह प्रदेश संबलपुर उड़ीसा में चला गया और ‘सरगुजा’ रियासत बंगाल से छत्तीसगढ़ के पास आया।
  • छत्तीसगढ़ पूर्व में दक्षिणी झारखंड और ओडिशा से, पश्चिम में मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र से, उत्तर में उत्तरप्रदेश और पश्चिमी झारखंड, दक्षिण में आंध्रप्रदेश से घिरा है।

छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटन स्थल

देश में तेजी से विकास करते राज्य के रूप में पहचान बना चुके छत्तीसगढ़ की धरती भले लोग नक्सलियों के नाम से जानते हो, लेकिन यहां मंदिरों की नगरी बसती है, यहां एशिया का नियाग्रा है। यहां देवियों के नाम से शहर जाने जाते हैं। यहां आदिवासियों के नाम से जंगल जाने जाते हैं, तो आइए आपको बताते हैं अद्भुत और आश्चर्यचकित कर देने वाले छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों के बारे में।

  • भोरमदेव- भोरमदेव मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है। यह मंदिर कबीरधाम जिले में स्थित है। पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा, नागर शैली में बना यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। 7वीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी में बने इस मंदिर को नागवंश के राजा रामचंद्र ने बनवाया था। इस पुरात्तविक धरोहर को देखने हर रोज हजारों की संख्या में यहां पर्यटक पहुंचते हैं।
  • सिरपुर- महासमुंद जिले में बसा सिरपुर पुरातात्विक अवशेषों से समृद्ध है। यहां के प्रसिद्द लक्ष्मणेश्वर मंदिर और गंधेश्वर मंदिर को देखने विदेशों से भी लोग आते हैं। इस ऐतिहासिक मंदिर के चारों तरफ आपको पुराने शिलालेख, भगवान की मूर्तियां और खुदाई से निकाले गए कई प्राचीन अवशेष देखने को मिलेंगे।
  • मैनपाट- सरगुजा के अंबिकापुर में स्थित ये सबसे पसंदीदा पर्यटन स्थलों में से एक है। हरी-भरी वादियों और सुंदर दृश्यों से भरा मैनपाट घूमने के लिए सबसे बेहतरीन माना जाता है। यहां साल भर ठंड का मौसम होता है इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का शिमला भी कहा जाता है। कोहरे से ढकी वादियां बरबस ही मन मोह लेती है और सुकून का अनुभव कराती हैं। मैनपाट को ‘मिनी तिब्बत’ के नाम से भी जाना जाता है। 1962 में यहां तिब्बतियों को शरणार्थियों के रुप में बसाया गया था।
  • अचानकमार टाइगर रिजर्व- बिलासपुर जिले में बसा अचानकमार, मैकल पर्वत श्रृंखला से घिरा हुआ है। कहा जाता है कि यहां जाने का सबसे अच्छा वक्त नवंबर से जून तक होता है। साल 1975 में इस अभ्यारण्य की स्थापना हुई और साल 2009 में इसे टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। बंगाल टाइगर, तेंदुआ, चीतल, हिरण और नील गाय के साथ ही कई जानवरों की प्रजातियां यहां देखने को मिलती है।
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    अचानकमार

  • चंपारण – राजधानी रायपुर स्थित चंपारण को चंपाझर के नाम से भी जाना जाता है। यह वल्लभ संप्रदाय के सुधारक और संस्थापक संत वल्लभाचार्य का जन्म स्थान है। संत वल्लभाचार्य के सम्मान में यहां एक सुंदर मंदिर का निर्माण कराया गया है। वहीं चंपकेश्वर महादेव का मंदिर यहां का विशेष आकर्षण है।
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    चंपारण

  • चित्रकोट- बस्तर की पहचान कहे जाने वाले चित्रकोट को भारत का नियाग्रा कहा जाता है। बस्तर की जीवन रेखा कहे जाने वाली इंद्रावती नदी में बसे इस खूबसूरत जलप्रपात को देखने देश-विदेश से रोजाना हजारों की संख्या में लोग आते हैं। 95 फीट ऊंचे इस जलप्रपात का सुंदर नजारा देखने के लिए जुलाई से अक्टूबर तक का महीना सबसे सटीक होता है।
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    चित्रकोट जलप्रपात

छत्तीसगढ़ की नदियां

छत्तीसगढ़ में 12 से ज्यादा नदियां बहती हैं. यहां प्रमुख नदियों के बारे में जानेंगे।

  • महानदी- छत्तीसगढ़ की जीवनरेखा कहे जाने वाली महानदी का उल्लेख मत्स्य पुराण, महाभारत और ब्रह्म पुराण में भी हुआ है। प्राचीन काल में महानदी को चित्रोत्पला, महानंदा, मंदाकिनी के नामों से भी जाना जाता था। छत्तीसगढ़ का इतिहास जानने पर पता चलता है कि इसके नाम को लेकर कई मान्यताएं हैं। महानदी धमतरी जिले के सिहावा पर्वत से 42 मीटर की ऊंचाई से निकलकर दक्षिण-पूर्व की ओर से ओडिशा के पास से बहते हुए बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। छत्तीसगढ़ राज्य में इसकी लम्बाई 286 किलोमीटर है। महानदी की कुल लम्बाई 858 किलोमीटर है।
  • शिवनाथ नदी- यह महानदी की सहायक नदी है। यह राजनांदगांव जिले के अंबागढ़ तहसील की 625 मीटर ऊंची पानाबरस पहाड़ी से निकलकर बलौदाबाजार तहसील के पास महानदी में मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियां लीलागर, मनियारी, आगर, हांप, सुरही, खारुन और अरपा हैं. इसकी कुल लम्बाई 290 किलोमीटर है। मोंगरा बैराज परियोजना इसी नदी में है।
  • अरपा नदी- इसका उद्गम पेंड्रा पठार की पहाड़ी से हुआ है। यह महानदी की सहायक नदी है. अरपा नदी बिलासपुर तहसील में प्रवाहित होती है और बरतोरी के पास ठाकुर देव नामक स्थान पर शिवनाथ नदी में मिल जाती है। इसकी लम्बाई 147 किलोमीटर है।
  • इंद्रावती नदी- यह नदी गोदावरी नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है। यह बस्तर की जीवनदायिनी नदी है। बस्तर संभाग की सबसे बड़ी नदी है। इसका उद्गम ओडिशा राज्य में कालाहंडी स्थित डोगरला पहाड़ी से हुआ है। यह आंध्रप्रदेश में जाकर गोदावरी नदी में मिल जाती है। जगदलपुर शहर इसी नदी के तट पर बसा हुआ है। इस नदी का प्रवाह क्षेत्र 26.620 वर्ग किलोमीटर है और लम्बाई 372 किलोमीटर है। डंकिनी और शंखिनी नदी इन्द्रावती की सहायक नदियां हैं।

छत्तीसगढ़ में स्थित प्रमुख देवी मंदिरों की जानकारी

  • दंतेवाड़ा दंतेश्वरी मंदिर- दंतेश्वरी मंदिर जगदलपुर से करीब 84 किमी की दूरी पर स्थित है। दंतेवाड़ा शंकिणी और डंकिनी नदी के संगम पर स्थित है। यहां मां दंतेश्वरी का 600 साल पुराना मंदिर है। दंतेश्वरी मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में दक्षिण भारतीय शैली में किया गया था। यहां देवी की षष्टभुजी काले रंग की मूर्ति स्थापित है। छह भुजाओं में देवी ने दाएं हाथ में शंख, खड्ग, त्रिशूल और बाएं हाथ में घंटी और राक्षस के बाल धारण किए हुए हैं। मंदिर में देवी के चरण चिन्ह भी मौजूद हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने एक गरुड़ स्तंभ है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, इस स्थान पर मां सती के दांत गिरे थे, इसलिए यहां मां के स्वरूप को दंतेश्वरी के रूप में पूजा जाता है। इस मंदिर की गिनती 52 शक्तिपीठों में भी की जाती है, हालांकि इस बारे में विद्वानों के अलग-अलग मत भी हैं।
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    दंतेश्वरी माई

  • रतनपुर महामाया मंदिर- रतनपुर क्षेत्र मां महामाया के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि रतनपुर महामाया मंदिर 51 शक्तिपीठ में से एक है। पौराणिक मान्यता है कि यहां मां सती के शरीर का दाहिना स्कंध गिरा था और इस वजह से इसे शक्तिपीठ में शामिल किया गया। यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपनी मन्नतें लेकर माता के दर्शन को आते हैं। 1050 ईसवी में राजा रत्नदेव ने मां महामाया मंदिर का भव्य निर्माण करवाया जो अब राष्ट्रीय स्तर पर मां महामाया की सिद्ध मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। रतनपुर मंदिर का मंडप 16 स्तम्भों पर टिका हुआ है जो एक बेजोड़ स्थापत्य कला का नमूना है।
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    रतनपुर का महामाया मंदिर

  • चंद्रपुर चंद्रहासिनी मंदिर- आदिकाल से मान्यता है कि यहां महानदी के किनारे चंद्रपुर में माता सती का अधोदंत गिरा था, जिसके बाद से यहां पर सिद्ध पीठ की स्थापना की गई थी। यही कारण है कि यहां चंद्रहासिनी देवी का दर्शन करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर चंद्रपुर में महानदी के तट पर एक बड़ा ही भव्य मां चंद्रहासिनी का मंदिर है। यह मंदिर छतीसगढ़ के सबसे प्राचीन मंदिरों में एक है। यहां बने पौराणिक और धार्मिक कथाओं की झाकियां, समुद्र मंथन आदि, मां चंद्रहासिनी के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है।
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    चंद्रपुर चंद्रहासिनी

  • बागबहारा चंडी देवी मंदिर- ये ऐसा मंदिर है जहां रोजाना आरती के वक्त शाम में भालू अपने परिवार के साथ प्रसाद खाने पहुंचता है। इसे देखने के लिए लोग राज्य के अलावा दूसरे राज्यों से भी पहुंचते हैं। बागबाहरा क्षेत्र के दक्षिण में चारों तरफ से पहाड़ियों और घने जंगलों से घिरे स्थान पर मां चंडी देवी का विशाल मंदिर है। यहां विराजमान मां चंडी देवी की प्रतिमा 20 फीट की है। ऐसा माना जाता है कि प्राकृतिक रूप में निर्मित इतनी भव्य मूर्ति पूरे भारत में और कहीं नहीं है। यहां देवी की प्रतिमा रूद्र मुखी और दक्षिण मुखी होने के कारण मनोकामना सिद्धि के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।
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    चंडी देवी मंदिर महासमुंद

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