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पटरी पर लौट रही देश की अर्थव्‍यवस्‍था, जीएसटी संग्रह दे रहा इसकी गवाही

नई दिल्ली, 14 नवबंर। अक्‍टूबर माह के जीएसटी संग्रह ने यह साबित कर दिया कि कोविड से प्रभावित भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है। अक्टूबर में जीएसटी संग्रह 1.30 लाख करोड़ रुपये से अधिक का रहा। यह पिछले अक्टूबर के मुकाबले 24 प्रतिशत ज्यादा रहा। चूंकि जीएसटी के दायरे के बाहर भी अर्थव्यवस्था के तमाम पहलू हैं और यदि उन्हें भी देखा जाए तो आर्थिक प्रगति में सुधार साफ दिखेगा। जीएसटी संग्रह में वृद्धि तब देखने को मिली, जब आटोमोबाइल सरीखे कई सेक्टर अपेक्षित प्रगति नहीं कर रहे हैं। हमारी अर्थव्यवस्था में आटोमोबाइल उद्योग का एक बड़ा योगदान है, लेकिन चिप और कुछ अन्य आयातित उत्पादों की कमी के कारण वाहनों का उत्पादन धीमा है। इसका कुछ न कुछ असर जीएसटी संग्रह पर अवश्य पड़ा होगा। अभी टूरिज्म, रेस्त्रां, होटल और एविएशन इंडस्ट्री भी पूरी तरह पटरी पर नहीं आई है। अंतरराष्ट्रीय पर्यटन ठहरा हुआ सा है और इस कारण विदेशी पर्यटक बहुत कम संख्या में भारत आ रहे हैं। घरेलू पर्यटन ने अवश्य तेजी पकड़ ली है, लेकिन तमाम एयरलाइंस पूरी क्षमता से नहीं चल रही हैं। इसी तरह दिल्ली सहित कुछ बड़े शहरों में जमीन-जायदाद का कारोबार तो ढर्रे पर आता दिख रहा है, लेकिन छोटे-मझोले शहरों में अभी ऐसा नहीं हो रहा है।

अपने देश की एक बहुत बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है और इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पिछले कार्यकाल से ही किसानों को सीधे उनके खाते में किसान सम्मान निधि समेत तमाम तरह के अनुदान देने का जो सिलसिला कायम किया, उसका असर भी अब दिखने लगा है। सीधे खाते में धन देने की व्यवस्था से किसानों के साथ गरीबों को भी राहत मिली है। इसके बाद भी किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य अभी दूर है। जीएसटी संग्रह को देखते हुए ही केंद्र सरकार ने लगातार महंगे हो रहे पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क कम किया। इसके बाद भाजपा और उसके सहयोगी दलों की सरकारों ने इन पेट्रोलियम उत्पादों पर वैट घटाया। इससे लोगों को राहत मिली। पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों पर राजनीति करने वाले कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की सरकारों ने प्रारंभ में पेट्रोल और डीजल पर से वैट कम करने में आनाकानी की, लेकिन चौतरफा आलोचना के बाद उन्होंने ऐसा करना शुरू कर दिया है। कुछ राज्य सरकारें अभी भी ऐसा करने से बच रही हैं। यह आश्चर्य की बात है कि जो विपक्षी दल पेट्रोल और डीजल के दामों को लेकर केंद्र सरकार को घेर रहे थे, वही अपने शासन वाले राज्यों में लोगों को राहत देने में आनाकानी करते दिखे। यह आनाकानी इसीलिए की गई ताकि राजस्व में कमी न आने पाए।

नि:संदेह अर्थव्यवस्था में केंद्र सरकार की योजनाओं का बहुत बड़ा योगदान होता है, लेकिन इसी के साथ राज्यों की अपनी आर्थिक योजनाएं भी उसे गति प्रदान करती हैं। अर्थव्यवस्था लगातार बढ़े, इसके लिए यह जरूरी होता है कि देश के नागरिक जुगाड़ संस्कृति अपनाने से बचें। यह संस्कृति कायदे-कानूनों से बचने के फेर में पनपती है। इससे लोगों का समय या पैसा तो बच सकता है, पर इसके कारण कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है। अपने देश में लाजिस्टिक की लागत विश्व की तमाम अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कहीं अधिक है। वर्तमान में ट्रकों से माल भेजने की जो व्यवस्था है, उसमें अभी बहुत सुधार की आवश्यकता है। माना जा रहा था कि जीएसटी लागू होने के बाद ट्रकों का राज्यों की सीमाओं पर रुकना कम होगा, पर अभी तक ऐसा नहीं हुआ है।

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