छत्तीसगढ

प्रदेश के पांच जिले में लगेंगे जेई के टीके…टीका लगाने संबंधी राष्ट्रीय स्तर पर मिला प्रशिक्षण

रायपुर, 4 अक्टूबर। छत्तीसगढ़ राज्य के पांच जिलों में अब जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) के टीके लगाए जाएंगे। इसके लिए बीते दिनों राष्ट्रीय स्तर पर टीकाकरण अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है।

हालांकि छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में पहले ही यह टीका लगाया जा रहा है। अब पांच अन्य जिलों के रहवासियों को भी दिमागी बुखार से बचाने के लिए टीके लगाए जाएंगे। राज्य टीकाकरण अधिकारी डॉ. अमर सिंह ठाकुर ने बताया क्यूलेक्स ट्रीटीनियोरिंक्स मच्छर के काटने से जापानी इंसेफलाइटिस होता है। इससे बचाव में टीके का बड़ा महत्व होता है। जेई का टीका लगवाने के बाद बच्चे पर इस बीमारी के हमले का खतरा समाप्त हो जाता है। टीकाकरण के जरिये जेई से होने वाली मौत और विकलांगता के खतरे से बचा सकते हैं। टीकाकरण को लेकर तैयारियां की जा रही हैं। जल्द ही सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के निर्देशानुसार स्वास्थ्य अधिकारियों को जिला स्तरीय प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके बाद 1 से 15 साल आयुवर्ग को जेई कैम्पेन के तहत टीके लगाए जाएंगे।

इन जिलों में लगेंगे टीके- जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) टीके प्रदेश के पांच जिलों में लगाए जाएंगे। राष्ट्रीय स्तर पर राज्य के बीजापुर, कोंडागांव, दंतेवाड़ा, धमतरी और बस्तर जिले में टीके लगाने की अनुमति प्रदान की गई है। राज्य स्तर पर वैक्सीन संबंधी ट्रेनिंग के बाद संबंधित क्षेत्र में टीके लगाए जाएंगे।

जापानी इंसेफेलाइटिस – दिमागी बुखार विषाणुजनित मस्तिष्क का इनफेक्शन है। यह मच्छर के काटने से फैलता है। जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस जेईवी सूअरों और पक्षियों में पाया जाता है और जब मच्छर इन संक्रमित जानवरों को काटते हैं तो यह विषाणु मच्छरों में भी पहुंच जाता है। जेई एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता।

बीमारी के लक्षण – तेज बुखार, भ्रम की स्थिति, हिलने-डुलने में दिक्कत, दौरे, शरीर के अंगों का अनियंत्रित ढंग से हिलना और मांसपेशियां कमजोर होना शामिल है। इसके लक्षण गंभीर हो सकते हैं और उपचार न करवाने पर जानलेवा भी हो सकते हैं।

बचाव के उपाय- बच्चों को अग्रिम टीके लगाना, बीमारी का लक्षण मिलते ही अविलंब अस्पताल ले जाकर जांच कराना, चिकित्सक के परामर्श के अनुसार इलाज कराना, मच्छरों से बचाव के साधन अपनाना, मच्छर पनपने नहीं देना आदि।

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