विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस विशेष: समय पर पहुंची अस्पताल वरना गवां देतीं जान
-दादाजी और बहन ने पहचानी मनोदशा, परामर्श से अब है खुशहाल
बलौदाबाजार, 9 सितंबर। संध्या साव (परिवर्तित नाम) कभी काफी परेशान थीं। उन्हें अपनी जिंदगी बेरंग और बोझ लगने लगी थी। इसलिए उन्होंने जिंदगी को खत्म करने की कोशिश की। परंतु दादाजी और छोटी बहन की सूझबूझ की वजह से समय पर उन्हें अस्पताल ले जागा गया जहां उनकी जान भी बच गई और उनमें मनोचिकित्सकों द्वारा मिले परामर्श से जीवन जीने की ललक भी जाग गई है। आज संध्या सामान्य और खुशहाल जीवन जी रही हैं।
डॉ. राकेश कुमार प्रेमी मनो चिकित्सक (एनएमएचपी) (जिन्हें नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (निमहांस) द्वारा गेटकीपर ट्रेनिंग हासिल है) ने बताया तीन माह पहले भटगांव भिलाईगढ़ ब्लॉक की 18 वर्षीय संध्या जब उनके पास आई थी तो एकदम शांत, चेहरे पर उदासी, मायूसी, चिंता और शारीरिक दुर्बलता के साथ आत्महत्या करने पर उतारू थी। ऐसा इसलिए क्योंकि बीते एक साल से वह पीलिया बीमारी से ग्रसित थी। पारिवारिक परिवेश उसका काफी गरीब था और तीन भाई बहनों में वह बढ़ी थी। माता-पिता मजदूरी करते थे इसलिए उसका इलाज कराने में असमर्थ भी थे। संध्या के पिता नशा कर उन्हें और उनके भाई-बहनों के साथ गाली-गलौच और मारपीट भी करते थे। डॉ. राकेश के मुताबिक संध्या हमेशा बुझी-बुझी सी रहती थी। उसके मन में निराशा और जीवन के प्रति उदासीनता आ गई। इसी विचार की वजह से एक दिन उसने आत्महत्या का प्रयास किया परंतु उसकी छोटी बहन को इसकी जानकारी मिली और उसके दादाजी के सहयोग से उसे अस्पताल लाया गया, जहां चिकित्सकों के प्रयास से उनकी जान बच गई। मनोचिकित्सक के परामर्श और दादाजी के सहयोग से आज उनमें जीवन जीने की ललक जाग गई है। हालांकि अभी उनका इलाज चल ही रहा I संध्या कहती हैं “आस-पास के लोगों को भी मानसिक समस्याओं के प्रति जागरूक करूंगी।“
पीएचसी में मनोचिकित्सा- बलौदाबाजार के पीएचसी में मनोचिकित्सकों ने संध्या की काउंसिलिंग की। काउंसिलिंग के दौरान यह पता चला संध्या डिप्रेशन से ग्रस्त थी। गरीबी की वजह से उसे पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी थी। इसके बाद पीलिया की बीमारी और पिता के नशे में मारपीट करने और उसके स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देने की वजह से वह टूट गई, जिसके बाद उसने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया था। संध्या के साथ ही डॉ. राकेश कुमार प्रेमी ने उसके परिवार के लोगों की भी काउंसिलिंग की और संध्या के साथ व्यवहार करने पर बात की। टेलीफोनिक परामर्श और मेडिटेशन की सलाह दी गई। साथ ही उसके माहवारी संबंधी समस्या के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञ से इलाज भी कराया गया। आज चिकित्सकीय परामर्श से संध्या ठीक हो सामान्य जीवन जीने लगी हैI
पिता की भी चल रही काउंसिलिंग – मनोचिकित्सक के अनुसार संध्या के पिता की भी स्थानीय पीएचसी और समीप के सीएचसी में काउंसिलिंग की जा रही है। ताकि उनकी शराब की आदत छुड़वा दी जाए जिससे पहले से सुधार देखा जा रहा है।
दिखे यह लक्षण तो हो जाएं सतर्क – डॉ. राकेश कुमार प्रेमी का कहना है आत्महत्या करना या उसका विचार आने का कोई एक कारण नहीं है। इसके अनगिनत कारण हो सकते हैं। लेकिन मानसिक तनाव एक मुख्य कारण है। यदि किसी भी व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव दिखे, जैसे- निराशा, बेबसी और हीनता का भाव तो तुरंत मदद पहुंचानी होती है। क्योंकि यह मानसिक रूप से अस्वस्थ्य होने के संकेत हैं। इसके साथ ही आत्महत्या का विचार रखने वालों को उपचार दिलाने के लिए उनके परिवार और दोस्तों को शामिल कर उन्हें भावनात्मक सहारा और स्वस्थ्य होने का आश्वासन अवश्य दें। जिन व्यक्तियों का इलाज चल रहा है उन रोगियों का फॉलोअप भी अवश्य करें।
बचाएं दूसरों की जान- डॉ. महेन्द्र सिहं उप संचालक, (राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ कार्यक्रम) ने बताया आत्महत्या के दर में कमी लाने के लिए प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह गेटकीपर के रूप में आत्महत्या रोकथाम करे। जब तनाव चरम पर पहुँच जाता है तो अक्सर लोग आत्महत्या करते हैं। समय से उनकी मदद की जाए तो उन्हें बचाया भी जा सकता है । कोई भी व्यक्ति गेटकीपर या द्वारपाल बन सकता है और आत्महत्या करने से बचा सकता है। इसके लिए विशेष ट्रेनिंग भी दी जा रही है।