छत्तीसगढ

शिक्षा में संरचनात्मक सुधारों के बिना, नई शिक्षा नीति अपेक्षित परिणाम नहीं देगी: राजेश चटर्जी

रायपुर, 30 जुलाई। छत्तीसगढ़ प्रदेश शिक्षक फेडरेशन के प्रांताध्यक्ष राजेश चटर्जी का कहना है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को शिक्षक ही धरातल पर उतारने का काम करेंगे। शिक्षा नीति पूरी तरह तभी सफल होगा जब शिक्षक इसे अपने मन की बात समझकर क्रियान्वित करेंगे। बंद AC कमरों में नीतियां तैयार तो किया जा सकता है लेकिन जमीनी हकीकत अलग होता है। उनका कहना है कि शिक्षा में संरचनात्मक सुधार किये बिना शिक्षा नीति बनाने से अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेगा।
फेडरेशन के अनुसार प्राथमिक में 1 से 5 तक 5 कक्षा 4 विषय,पूर्व माध्यमिक में 6 से 8 तक तीन कक्षा और 6 विषय एवं उच्चतर माध्यमिक में 9 से 12 तक 4 कक्षा 6/5 विषय है।कक्षाओं की संख्या और विषयों की संख्या के अनुपात में शिक्षक होना था,जबकि नई शिक्षा नीति में अनुपात 25:1 अथार्त 25 विद्यार्थियों पर 1 शिक्षक होने का उल्लेख है।जोकि अव्यवहारिक है।
उन्होंने बताया नई शिक्षा नीति में बेसिक साक्षरता और बेसिक न्यूमरेसी पर भी फोकस किया गया है।इसके तहत पाठ्यक्रम के शैक्षणिक ढांचे में संकाय का कोई अलगाव न रखते हुए बड़ा बदलाव किया गया है। नीति में इस बात पर जोर दिया गया है कि कम से कम कक्षा 5 तक सिखाने का माध्यम मातृभाषा या स्थानीय/क्षेत्रीय भाषा हो।लेकिन कक्षा 8 तक या उसके बाद यह प्राथमिकता आधार पर होगा।इसके कारण भविष्य में उच्च शिक्षा एवं एम एन सी में रोजगार का अवसर प्रभावित हो सकता है।सभी स्कूली स्तरों और उच्च शिक्षा स्तर पर संस्कृत को 3 लैंग्वेज फॉर्मूला के साथ विकल्प के रूप में पेश किया गया है। नई शिक्षा नीति के तहत बोर्ड परीक्षाएं लो स्टेक वाली होंगी और छात्र के वास्तविक ज्ञान का आकलन करने वाली होंगी। इसका अर्थ है कि रिपोर्ट कार्ड प्रतिभा एवं क्षमता की विस्तृत रिपोर्ट देने वाले होंगे, केवल नंबर बताने वाले नहीं होंगे।
फेडरेशन के मानना है कि आँगनबाड़ी किस प्रकार मजबूत होगा और प्री-स्कूल के सेटअप स्पष्ट नहीं है।उन्होंने नए पाठ्यक्रम और शैक्षणिक संरचना 5+3+3+4 के चार चरणों को स्पष्ट किया कि मूलभूत चरण में पहले तीन साल बच्चे आंगनबाड़ी में प्री-स्कूलिंग शिक्षा लेंगे। फिर अगले दो साल कक्षा एक एवं दो में बच्चे स्कूल में पढ़ेंगे। इन पांच सालों की पढ़ाई के लिए एक नया पाठ्यक्रम तैयार होगा। मोटे तौर पर एक्टिविटी आधारित शिक्षण पर ध्यान रहेगा। इसमें तीन से आठ साल तक की आयु के बच्चे कवर होंगे। इस प्रकार पढ़ाई के पहले पांच साल का चरण पूरा होगा। प्राथमिक चरण इसमें कक्षा तीन से पांच तक की पढ़ाई होगी। इस दौरान प्रयोगों के जरिए बच्चों को विज्ञान, गणित, कला आदि की पढ़ाई कराई जाएगी। 8 से 11 साल तक की उम्र के बच्चों को इसमें कवर किया जाएगा।मध्य चरण में कक्षा 6 से 8 की कक्षाओं की पढ़ाई होगी तथा 11से14 साल की उम्र के बच्चों को कवर किया जाएगा। इन कक्षाओं में विषय आधारित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा। कक्षा छह से ही कौशल विकास कोर्स भी शुरू होगा। माध्यमिक चरण में कक्षा 9 से 12 की पढ़ाई दो चरणों में होगी। जिसमें विषयों का गहन अध्ययन कराया जाएगा। विषयों को चुनने की आजादी भी होगी।छटवीं कक्षा से ही बच्चे को प्रोफेशनल और स्किल की शिक्षा दी जाएगी। स्थानीय स्तर पर इंटर्नशिप भी कराई जाएगी। व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर जोर दिया जाएगा। नई शिक्षा नीति बेरोजगार तैयार नहीं करेगी। स्कूल में ही बच्चे को नौकरी के जरूरी प्रोफेशनल शिक्षा दिये जाने का उल्लेख है।उन्होंने महाविद्यालयीन शिक्षा को स्वायतशासी करने के निर्णय को गरीब परिवार के बच्चों के लिए अहितकर बताया है।उनका कहना है कि यह एक प्रकार से निजीकरण को बढ़ावा देना है। संभावना है कि आने वाले समय में गरीब परिवार के बच्चों को उच्च शिक्षा के बारे में सोचना कठिन हो! उच्च शिक्षा का द्वार केवल पूंजीपतियों के बच्चों के लिए खुला रहे !

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