छत्तीसगढ

स्कूल शिक्षा मंत्री ने अपने विद्यार्थी जीवन में गुरू के योगदान को साझा किया

रायपुर, 18 जून। बचपन में ग्राम सिलौटा की प्राथमिक शाला के शिक्षक श्री नारायण सिंह ने एकाएक स्कूल की चाबी देकर जिम्मेदारी सौंपी थी, तब किसे मालूम था कि सूरजपुर जिले के विकासखण्ड प्रतापपुर के ग्राम सिलौटा का यह बालक बड़ा होकर छत्तीसगढ़ राज्य के सभी स्कूलों की जिम्मेदारी संभालेगा। स्कूल शिक्षा मंत्री डाॅ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने यह जानकारी आज प्रदेशव्यापी ‘गुरू तुझे सलाम’ के राज्य स्तरीय शुभारंभ कार्यक्रम में अपने विद्यार्थी जीवन में गुरू के योगदान को साझा करते हुए दी। बचपन में अपने स्कूल की जिम्मेदारी उठाने वाला यह बालक कोई और नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ सरकार के स्कूल शिक्षा मंत्री डाॅ. प्रेमसाय सिंह टेकाम स्वयं थे। डाॅ. टेकाम ने इस मौके पर स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा राज्यभर के गुरूओं के सम्मान में शुरू किए गए ‘गुरू तुझे सलाम’ अभियान का शुभारंभ किया।
स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा शुरू की गई ‘पढ़ई तुंहर दुआर’ आॅनलाइन कार्यक्रम के अंतर्गत शिक्षकों, विद्यार्थियों और पालकों के बीच के संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रदेशव्यापी ‘गुरू तुझे सलाम’ अभियान के राज्य स्तरीय आयोजन राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के राज्य स्तरीय मीडिया सेंटर में किया गया। इसमें 28 जिलों के चुने हुए प्रतिभागियों सहित एक हजार शिक्षकों ने भाग लिया। उल्लेखनीय है कि इसके लाइव प्रसारण को यूट्यूब चैनल के माध्यम से 12 हजार से अधिक लोगों ने देखा। अभियान में जिले के नामित प्रतिभागियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
स्कूल शिक्षा मंत्री डाॅ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने कहा कि जब वे पढ़ाई कर रहे थे, उस समय हमारे गांव में स्कूल नहीं था। मैं अपने दोस्तों के साथ सायकिल चलाकर 7 किलोमीटर दूर पढ़ने के लिए स्कूल जाता था। अक्सर देर हो जाती थी। गुरूजी ने एक बार देर से आने का कारण पूछा तो मैंने कह दिया कि साइकिल पंचर हो गई थी। गुरूजी ने मुझे और मेरे दोस्त को अलग-अलग ले जाकर एक ही सवाल पूछा कि कौन सा टायर पंचर हुआ था। हम दोनों ने अलग-अलग जवाब दिया और झूठ बोलने पर खूब डांट पड़ी।
स्कूल शिक्षा मंत्री ने कहा कि झूठ बोलने की सजा और रोज देर से आने को रोकने के लिए मेरे शिक्षक श्री नारायण सिंह जी ने उस दिन स्कूल की चाबी मुझे सौंप दी, ताकि मुझे सबसे पहले आकर स्कूल खोलना पड़े। उनके द्वारा जिम्मेदारी देने के बाद मुझे रोज समय पर स्कूल जाने की आदत हो गई और स्कूल अपना सा लगने लगा। डाॅ. टेकाम ने कहा कि साथियों के साथ मिलकर स्कूल में श्रमदान कर नई कक्षा तैयार कर दी। स्कूल के विकास के लिए कुछ न कुछ करने लगे। आसपास के स्कूलों में शिक्षक के साथ जाकर वहां जो अच्छा और नया चल रहा है, उसे देखकर अपने स्कूल में करने की कोशिश करता। स्कूल शिक्षा मंत्री ने कहा कि स्कूल जाने वाले एक सहपाठी का आकस्मिक निधन हो गया। उस समय गांव के आसपास इलाज के लिए अस्पताल नहीं था। उस दिन मुझे अपने गांव में अस्पताल और स्कूल न होने का बहुत पछतावा हुआ। पहली बार जब विधायक बना तो सबसे पहले गांव में स्कूल और अस्पताल दोनों स्वीकृत करवाए। वह दिन अभी भी मेरे जीवन का यादगार दिन है।
प्रदेश के 28 जिलों के प्रतिभागी सुश्री कादम्बिनी यादव, रश्मि अग्रवाल, सरिता जैन, प्रज्ञा सिंह, रामबाई रात्रे, परवीन कुमारी, किरन शर्मा, परवीन बानो, रेखा पुरोहित, सुनीता पाठक, कविता हिरवानी, शीला गोस्वामी, नेहा गुप्ता, चंचल चंद्राकर, नीति श्रीवास्तव और कौशिक मुनि त्रिपाठी, रामकृष्ण, दीपक धीवर, रोशन वर्मा, गोविंद नायडू, रामेश्वर धनकर, रामकुमार पटेल सहित मो. शफीक अहमद ने दो-दो मिनट की समय-सीमा में अपने विचार व्यक्त किए। राज्य स्तर आयोजन में राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के संयुक्त संचालक डाॅ. योगेश शिवहरे ने भी अपने जीवन के अनुभव को साझा किया। सहायक संचालक समग्र शिक्षा डाॅ. एम. सुधीश, राज्य मीडिया सेंटर के प्रभारी प्रशांत कुमार पाण्डेय और सलाहकार सत्यराज विशेष रूप से उपस्थित थे।

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