छत्तीसगढ

Durgapuja : बंगाली समाज में आज मां दुर्गा का आगमन, 4 दिनों तक चलेगा दुर्गोत्स्व

अष्टमी के दिन रात 11:25 महत्वपूर्ण संधि पूजा

रायपुर, 11 अक्टूबर। 11 अक्टूबर को षष्ठी के दिन यानी कि, आज दुर्गा मां की प्रतिमा स्थापित करने से लेकर सिंदूर उत्सव तक दुर्गा पूजा का धमाल रहेगा। अबकी बार 13 अक्टूबर को अष्टमी के दिन महत्वपूर्ण संधि पूजा रात को 11:25 मिनट से रात 12:17 मिनट तक चलेगी। इससे पूर्व सप्तमी को प्राण प्रतिष्ठा होगी और भोग प्रसाद से माता का आह्वान किया जाएगा।

शाम को धुनिचि नृत्य करके मां की स्तुति करेंगी। धुनिचि नृत्य बंगाल का प्रमुख नृत्य है, इसमें दुर्गा पूजा में माता को प्रसन्न करने के लिए अपने हाथ में मिट्टी के बर्तन में रखी अग्नि लेकर नृत्य किया जाता है। अष्टमी को 108 कमल और 108 दीपक से माता की पूजा होगी। अगले दिन 14 अक्टूबर को नवमी पूजन होगा। इस दिन हवन के बाद कन्याओं को भोजन कराया जाएगा। विजय दशमी 15 अक्टूबर को सिंदूर उत्सव खेला जाएगा। सुहागिनें एक दूसरे के सिंदूर लगाएंगी और फिर दूर्गा प्रतिमा का विसर्जन किया जाएगा।

माना कैंप में छोटे स्वरूप में विराजेंगी मां दुर्गा

माना कैंप में 50 साल से भी ज्यादा समय से मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित हो रही है। मां दुर्गा का त्योहार हर साल बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान मैदान में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें दूसरे शहरों से व्यापारी आकर अपने स्टॉल बुक कराते हैं। कोरोना के चलते पिछले साल दुर्गा पूजा का आयोजन नहीं किया गया था। इस वर्ष मां दुर्गा उत्सव का आयोजन तो किया जा रहा है, लेकिन बहुत ही छोटे रूप में स्थापित किया जा रहा है। 5 दिनों से चल रहे भंडारे पर सरकार की रोक के चलते इस साल न तो भोग लगाया जाएगा और न ही वितरण किया जाएगा।

नहीं दिखेगा विशाल मेला

इस साल नहीं दिखेगा विशाल रूप में लगने वाला मेला। कोरोना के चलते पिछले वर्ष भी नहीं हो पाया था मेला, अब इस बार भी नहीं होगा। हालांकि समिति द्वारा सरकार से अनुरोध के बाद छोटे व्यापारियों को अपनी जिम्मेदारी पर स्टॉल लगाने की अनुमति दी गई।

Durgapuja: Arrival of Maa Durga in Bengali society today, Durgatswa will last for 4 days

बंगाल ट्रेडिशन धुनुची नृत्य

बंगाल में भी एक बहुत पुरानी परंपरा है, जिसे धुनुची नाच कहा जाता है। यह नवरात्रों में दुर्गा पूजा के दौरान किए जाने वाला नृत्य है। दुर्गा पूजा पंडालों में धुनुची नृत्य का नजारा देख आंखें ठहर जाती हैं। पुरुष हों या महिलाएं यह डांस सभी करते हैं। श्रद्धालु कभी दांतों में फंसाकर तो कभी दोनों हाथों के बीच धुनुची की अठखेलियां दिखाते हैं। उस पर खास बात यह कि गजब का बैलंस डिमांड करने वाले इस डांस के लिए न तो कोई ट्रेनिंग होती है, न प्रैक्टिस। बस ढाक का साथ और हार्थों में जलती धुनुची दोनों को लेकर भक्तजन श्रद्धापूर्वक नृत्य करते हैं।

धुनुची नृत्य असल में शक्ति नृत्य है। बंगाल ट्रेडिशन में यह नृत्य माँ भवानी की शक्ति और ऊर्जा बढ़ाने के लिए किया जाता है। पुराणों के अनुसार, चूंकि महिषासुर बहुत ही बलशाली था। उसे कोई नर, देवता मार नहीं सकता था। मां भवानी उसका वध करने जाती हैं। इसलिए मां के भक्त उनकी शक्ति और ऊर्जा बढ़ाने के लिए धुनुची नृत्य करते हैं। धुनुची में कोकोनट कॉयर और हवन सामग्री (धुनो) रखा जाता है। उसी से मां की आरती की जाती है। धुनुची नृत्य सप्तमी से शुरू होता है और अष्टमी और नवमी तक चलता है।

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