छत्तीसगढ

भारतीय कृषि विश्वविद्यालय संघ का 44वां वार्षिक कुलपति अधिवेशन प्रारंभ

0 रोजगार एवं उद्यम के योग्य स्नातक तैयार करें कृषि विश्वविद्यालय: राज्यपाल

0 स्नातक कृषि शिक्षा के स्वरूप में बदलाव पर चिंतन किया जाएगा

रायपुर। राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से आव्हान किया है कि वे ऐसे कृषि स्नातक तैयार करें जो स्नातक स्तर की शिक्षा समाप्ति के साथ ही रोजगार प्राप्त करने, कृषि को व्यवसाय के रूप में अपनाने अथवा कृषि आधारित उद्योग प्रारंभ करने की काबिलियत हासिल कर लें। उन्होंने कहा कि इसके लिए विश्वविद्यालयों को नाॅलेज क्रिएशन और वैल्यू क्रिएशन की दोहरी भूमिका का निर्वाह करना होगा। सुश्री उइके आज यहां इंदिरा गंाधी कृषि विश्वविद्यालय में भारतीय कृषि विश्वविद्यालय संघ के 44वें वार्षिक कुलपति अधिवेशन का शुभारंभ कर रहीं थी। कृषि महाविद्यालय, रायपुर के प्रेक्षागृह में आयोजित इस दो दिवसीय अधिवेशन में देश भर के कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपति शामिल हुए। इस दो दिवसीय अधिवेशन के दौरान कुल सात सत्र आयोजित किए जाएंगे जिसमें स्नातक स्तर की कृषि शिक्षा के स्वरूप पर गहन विचार-विमर्श किया जाएगा और इसे अधिक प्रभावी बनाने हेतु अनुशंसाएं दी जाएगी।
राज्यपाल ने इस अवसर पर कहा कि आज कृषि एवं कृषकांे की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, एवं इसमें सुधार करने हेतु यह अत्यंत आवश्यक है कि नवीन तकनीकों एवं विज्ञान का उपयोग किया जाए। इस हेतु भी यह आवश्यक है कि युवाओं को कृषि से जोड़ा जाए, क्योंकि आधुनिक तकनीकों का उपयोग युवा ही बेहतर ढंग से कर सकता है। इस परिस्थिति में यह अत्यंत आवश्यक है कि हम अपने स्नातक स्तर की शिक्षा पद्धति को आज की परिस्थितियों के अनुसार जांचे, परखे एवं इसमें प्रभावी बदलाव करें, जिससे समाज और देश की आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि वर्तमान कृषि शिक्षा प्रणाली प्रभावी नहीं रही है, परंतु अब समाज, देश एवं कृषि की आवश्यकताएं पूरी तरह से बदल गई है। जो आवश्यकताएं कुछ दशकों पहले थी एवं जिसके अनुरूप वर्तमान स्नातक कृषि शिक्षा प्रणाली तैयार की गई है, वह अब शायद प्रासंगिक नहीं रह गई है। आज कृषि स्नातक अपनी शिक्षा समाप्त करने के पश्चात न तो कृषि कर पाता है एवं ना ही कृषि से संबंधित कोई उद्यम स्थापित कर पाता है। अधिकतर युवा मास्टर एवं पीएचडी की उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं, या नौकरी की तलाश में रहते हैं। स्नातक कृषि शिक्षा प्रदान करने के तरीकों को हमें इस प्रकार बदलना आवश्यक है, की छात्र स्नातक शिक्षा समाप्त करने के साथ ही कृषि एवं कृषि आधारित उद्योग प्रारंभ करने के योग्य हो जावे। यह और भी उचित होगा कि शिक्षा समाप्ति के साथ ही वह अपना आधुनिक फॉर्म या उद्यम भी स्थापित कर ले। राज्यपाल ने कहा कि हमारे परम्परागत और पुराने बीजों का संरक्षण किया जाना चाहिए। जैविक खेती का प्रचलन बढ़ रहा है, इसे अधिक से अधिक अपनाना चाहिए। हमारे आदिवासी क्षेत्रों में कोदो-कुटकी की खेती होती रही है, अब उन्हें बहुराष्ट्रीय कंपनिया अच्छे दामों में खरीद रही हैं, यह कभी गरीबों का भोजन हुआ करता था, आज बड़े-बडे़ होटलों में इनकी मांग बढ़ रही है। मेरा सुझाव है कि आदिवासी क्षेत्रों में बोए जाने वाले इस तरह के फसलों को प्रोत्साहित करें। इससे हमारा आदिवासी समाज कृषि के क्षेत्र में प्रगति कर पाएगा।
भारतीय कृषि विश्वविद्यालय संघ के महासचिव इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. एस.के. पाटील ने कहा कि वर्तमान में कृषि की परिस्थितियों, आवश्यकताओं और प्रौद्योगिकी में आए बदलाव और परिवर्तनशील चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए स्नातक स्तर की कृषि शिक्षा के स्वरूप के संबंध में चिन्तन किया जाना प्रासंगिक है। उन्होंने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरणीय परिस्थितियों में बदलाव, मौसम की अनिश्चितता से कृषि व्यवसाय में बढ़ते जोखिम, कृषि प्रौद्योगिकी में परिवर्तन, बाजार एवं रोजगार की स्थितियों आदि के कारण भारतीय कृषि के परिदृश्य में काफी बदलाव आया है। इसलिए स्नातक स्तर की कृषि शिक्षा के पाठ्यक्रम में बदलाव किया जाना अनिवार्य हो गया है। उन्होंने कहा कि कृषि शिक्षा को रोजगारपरक बनाया जाना आवश्यक है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि विश्वविद्यालय संघ के इस वार्षिक कुलपति अधिवेशन में इस विषय पर गहन विचार-विमर्श किया जएगा और सार्थक अनुशंसाएं दी जाएंगी। उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि विश्वविद्यालय संघ की स्थापना वर्ष 1967 में हुई थी और यह कृषि शिक्षा के क्षेत्र में एक अग्रणी संगठन है। देश के 42 कृषि विश्वविद्यलय, 6 उद्यानिकी विश्वविद्यालय, 15 पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय और 6 मत्सयिकी विश्वविद्यालय इसके सदस्य हैं।
राष्ट्रीय पारिस्थितिकी संस्थान, नई दिल्ली के अध्यक्ष एवं कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष डाॅ. डी.के. मारोठिया ने मुख्य वक्ता के रूप में कहा कि कृषि विश्वविद्यालय देश और समाज को नई दिशा देने मंे अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। देश में बड़ी संख्या में कृषि एवं संबंधित क्षेत्रों के विश्वविद्यालय कार्यरत हैं जहां बड़ी संख्या में विद्यार्थी पढ़कर निकलते हैं। यह विडम्बना है कि इनमें से कुछ ही विद्यार्थियों को उनके उपयुक्त रोजगार मिल पाता है। इसका बड़ा कारण यह है कि काॅलेज में उनकों दी गई शिक्षा व्यवहारिकता से परे होने के कारण उनकों रोजगार दिलाने में सक्षम नहीं होती। उन्होंने कहा कि कृषि शिक्षा के पाठ्यक्रम में परिवर्तन आज समय की आवश्यकता है। कृषि शिक्षा में कृषि के व्यवहारिक अनुभव को अधिक स्थान दिया जाना चाहिए। केन्द्रीयकृत पाठ्यक्रम के स्थान पर विश्वविद्यालयों को अपना पाठ्यक्रम स्वयं तैयार करने की स्वायतता दी जानी चाहिए।
अधिवेशन के शुभारंभ समारोह में भारतीय कृषि विश्वविद्यालय संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रो. एन.सी. पटेल पूर्व कुलपति आणंद कृषि विश्वविद्यालय एवं जुनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय का सम्मान किया गया। स्टूडेन्ट काॅर्नर एप का लोकार्पण भी किया जाएगा। इस अवसर पर समूह चर्चा का आयोजन भी किया गया जिसमें डाॅ. एम.बी. चेट्टी, कुलपति कृषि विश्वविद्यालय, धारवाड़, डाॅ. पी. कौशल कुलपति वाय.एस. परमार उद्यानिकी विश्वविद्यालय सोलन और डाॅ. के.एम. इंदिरेश कुलपति कृषि विश्वविद्यालय बागलकोट ने हिस्सा लिया। इस समूह चर्चा में प्रो.वी. दामोदर नायडू कुलपति गुंटूर और प्रो. सी.डी. माई पूर्व कृषि उत्पादन आयुक्त भारत सरकार ने टिप्पणियां दीं। अधिवेशन में देश के अनेक कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपति शामिल हुए जिनमें कृषि एवं उद्यानिकी विश्वविद्यालय शिवमोगा (कर्नाटक) के कुलपति डाॅ. एम.के. नाइक, बिधानचंद्र कृषि विश्वविद्यालय, मोहनपुर (पश्चिम बंगाल) के कुलपति डाॅ. डी.डी. पात्रा, ओडिशा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर के कुलपति डाॅ. पी.के. अग्रवाल, कामधेनु विश्वविद्यालय, गुजरात के कुलपति डाॅ. एन.एच. केलावाला, महाराष्ट्र पशु एवं मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, नागपुर के कुलपति डाॅ. ए.एम. पातुकर, महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ राहुरी, महाराष्ट्र के कुलपति डाॅ. के.पी. विश्वनाथ, शेर ए कश्मीर कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू के कुलपति डाॅ. के.एस. रिसाम, हिसार विश्वविद्यालय, हरियाणा के कुलपति डाॅ. के.पी. सिंह, केन्द्री कृषि विश्वविद्यालय इम्फाल के कुलपति डाॅ. प्रेमजीत सिंह, डाॅ. जयललिता मत्सयिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. एस. फैलिक्स, कृषि एवं उद्यानिकी विश्वविद्यालय, पालमपुर के कुलपति डाॅ. ए.के. सारियल, केरल मत्सयिकी एवं सामुद्रिक अध्ययन विश्वविद्यालय, कोच्चि के कुलपति डाॅ. ए. रामचंद्रन, कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, श्रीनगर के कुलपति डाॅ. नजीर अहमद और छत्तीसगढ़ कामधेनु विश्वविद्यालय, अंजोरा के कुलपति डाॅ. एन.पी. दक्षिणकर सहित देश के कई अन्य कृषि उद्यानिकी पशु चिकित्सा एवं मत्सयिकी विश्वविद्यालयों के निदेशक, अधिष्ठाता एवं अन्य प्रतिनिधियों ने सहभागिता दी। भारतीय कृषि विश्वविद्यालय संघ के कार्यकारी सचिव डाॅ. आर.पी. सिंह ने अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया।

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