राष्ट्रीय

अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति एक रियायत है, अधिकार नहीं- सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, 6 अक्टूबर। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सभी सरकारी रिक्तियों के लिए अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति एक रियायत है अधिकार नहीं। शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत अनिवार्य सभी सरकारी रिक्तियों के लिए अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति में सभी उम्मीदवारों को समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए, लेकिन यह एक मापदंडों का अपवाद है।

अनुकंपा का मकसद  संकट से उबरने में सक्षम बनाना

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एआर बोपन्ना की पीठ ने का कि इस अदालत द्वारा अपने कई फैसलों में दी गई व्यवस्था के मुताबिक अनुकंपा नियुक्ति लोक सेवाओं में नियुक्ति के सामान्य नियम का अपवाद है। पीठ ने कहा कि अनुकंपा के आधार पर रोजगार देने का पूरा मकसद परिवार को अचानक आए संकट से उबरने में सक्षम बनाना है। इसका उदेश्य ऐसे परिवार को मृतक के पद से कम पद देना नहीं है।

इस मामले पर हुई सुनवाई 

पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को रद करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली। हाई कोर्ट ने चतुर्थ श्रेणी के एक कर्मचारी की विधवा को तृतीय श्रेणी के पद पर नियुक्ति देने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने एकल पीठ के आदेश को भी बहाल किया, जिसे खंडपीठ ने रद कर दिया था। एकल पीठ ने तृतीय श्रेणी के पद के लिए महिला की उम्मीदवारी को खारिज कर दिया था, क्योंकि उसका पति चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी था।

हाल में ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुकंपा के आधार पर मिलने वाली नौकरियों के लिए विवाहित पुत्री को हकदार मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि विवाह होने के बाद बेटी परिवार का हिस्सा नहीं रह जाती इसलिए मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने की हकदार नहीं है। कोर्ट ने शिक्षण संस्थाओं के लिए निर्धारित रेग्युलेशन 1995 का भी उल्लेख किया जिसके अनुसार विवाहिता पुत्री को परिवार में शामिल नहीं बताया गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग अधिकार के रूप में नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कि कानून एवं परंपरा दोनों के अनुसार विवाहिता पुत्री अपने पति की आश्रित होती है, पिता की नहीं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button