बलवंत सिंह खन्ना की कलम से: “गोधन न्याय योजना” पूरे प्रदेश के साथ भारत देश मे जैविक क्रांति लायेगी
मेरा बचपन गांव में ही बीता है। गांव में पला-बढ़ा प्राथमिक शिक्षा ग्रहण किया और जीवन मे सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा और अनुभव गांव से ही प्राप्त हुआ। चूंकि गांव में हमारा घर मुख्य बस्ती से आखिर में है। हमारे घर के बाद से ही लगा हुआ। प्राथमिक शाला हुआ करता था जो अब माध्यमिक शाला हो गया है। फिर खुला मैदान उसी मैदान में गौठान/ दैहान आज भी है। तब बरसात या कहें जब खेतो में फसल लगते थे तब गांव का चरवाहा पूरे गांव की गायें,बैल,भैंस,भैसा सभी को वही पर सुबह-सुबह एकत्रित करता था। कुछ देर रखने के बाद चरवाहा सभी गौधन को जंगलों की तरफ चरवाने के जाता और फिर शाम को वापस घरो में का देता था। यह प्रक्रिया प्रति वर्ष आसाढ़ से लेकर फागुन में जब होली खेली जाती तब तक चलता था। जसके बाद जब खेतो से फसल की कटाई हो जाती तब सभी पशुओं को खुला/आवारा छोड़ दिया जाता था। तब हमारे एवं ग्रामीण क्षेत्रों के अमूमन सभी घरों में गाय, भैस पाला करते थे। इसके पीछे बहुत बड़ी और अनेक वजह थी जैसे कि घर गाय रखने से घर में ताजा दूध और दुग्ध पदार्थो की उपलब्धता हो जाती थी। भैस या बैल से खेतों के कार्य(हल व बैल/भैस गाड़ी) किया जाता था और उन सब के गोबर से चूल्हे की आग जलाने हेतु छेना(कंडा) उपलब्ध हो जाता था। इसके अलावा गौशाला से निकलने वाले मल/मूत्र को घुरवा में सालभर एकत्रित कर के आसाढ़ के पहले जैविक खाद के रूप में खेतों में डालने का भी कार्य किया जाता था। गर्मी के दिनों में जब स्कूल की बन्द होती तब गांव के सभी बच्चे अपने गाय/ भैंस को चराने जंगलो की तरफ जाते तब कौन अमीर कौन गरीब नही सोचते थे तब खेतो में घूमना उछल ,कूद करना हमारी दिनचर्या में होती थी। इस बहाने हम प्रकृति के और करीब होते थे महुआ हो जामुन हो बेर हो या हो मकोइया का झाड़ हम बड़े से बड़े पेड़ में बड़ी आसानी से चढ़ जाते थे। अब समय बदला ग्रामीण परिवेश में पशुपालकों में कमी देखी गयी गई। हमारे पूर्वजो द्वारा जिस पद्धति से खेती किया जाता यह है उसमें अब काफी परिवर्तन आयी है। अब हम यंत्रो एवं रासायनिक खादों पर निर्भर हो गए हैं। यही कारण है कि इस आधुनिकता के दौर में हमेंने अपनी पारम्परिक खेती एवं ग्रामीण दिनचर्या को भूल गए हैं। जैविक खाद्य का उत्पादन गांवो में भी नही के बराबर रह गया है।
ऐसे समय मे जब हम रासायनिक खाद्य पदार्थो का आदि हो गए हैं कृषि से लेकर हर कार्य आधुनिकता के नाम पर कमजोर या गुणवत्ताहीन हो रहा तब छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा गोधन न्याय योजना प्रारम्भ करना अपने आप मे बड़ी बात है। राज्य की महत्वाकांक्षी सुराजी गांव योजना के अंतर्गत नरवा, गरूवा, घुरूवा व बाड़ी का संरक्षण एवं संवर्धन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत संपूर्ण प्रदेश में गौठान स्थापित किया जा रहा है। राज्य शासन द्वारा गौठान की गतिविधियों में विस्तारण करते हुये गौठान में गोबर क्रय करते हुए संग्रहित गोबर से वर्मी कम्पोस्ट एवं अन्य उत्पाद तैयार करने हेतु ’’गोधन न्याय योजना’’ का प्रारंभ छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण पर्व ’हरेली’ (इस वर्ष दिनांक 20 जुलाई, 2020) से किया जा रहा है। योजना क्रियान्वयन से जैविक खेती को बढ़ावा, ग्रामीण एवं शहरी स्तर पर रोजगार के नये अवसर, गौपालन एवं गौ-सुरक्षा को प्रोत्साहन के साथ-साथ पशुपालकों को आर्थिक लाभ प्राप्त होगा। आगामी वर्षो में नवीन गौठानों की स्थापना के साथ-साथ योजना का विस्तार भी आवश्यकतानुसार किया जाना सरकार द्वारा प्रस्तावित है।
गोधन न्याय योजना का उद्देश्य
जिस तरीके से आजादी के बाद हरित क्रांति ने कृषि में अमूल-चूल परिवर्तन लाया वैसे ही छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा प्रारम्भ की गई “गोधन न्याय योजना” पूरे प्रदेश के साथ भारत देश मे जैविक क्रांति लायेगी । हरित क्रांति की शुरुवात हिने के बाद से रासायनिक खाद की उपयो बहुत हद तक होने लगी जिससे उत्पादन में तो वृद्धि हुई। लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आए। फसलो में राशायिनीक खाद के उपयोग से हम आने थाली में अदृश्य जहर लेने लगे। भूमि की उर्वरता क्षमता कम होम लगी। यूरिया की मात्रा प्रति वर्ष बढ़ने लगी इत्यादि। अब पुनः पारम्परिक खेती को ऊंट हुये जैविक खेती को बढ़ावा देना होगा। छत्तीसगढ़ सरकार की गोधन न्याय योजना इस दिशा में मिल का पत्थर साबित होगा। निसंदेह इसमे कई चुनौतियाँ भी आयेंगी और कठिनाइयां भी लेकिन सभी कठिनाइयों व चुनैतियों को पार कर लेंगे तो निश्चित ही प्रदेश में जैविक क्रांति का उदय होगा। ग्रामीणों के लिये गोबर हमेशा से ही आय का जरिया रहा है। गोबर से बना छेना (कंडा) 3 से 5 रुपए में बिकता है। एक ट्रैक्टर ट्रॉली गोबर डेढ़ से दो हजार रूपए में मिलती है। लेकिन अभी तक इस क्षेत्र के विकास हेतु कोई ठोस पहल नहीं हुई। दरअसल गौवंश को लेकर उतनी गंभीरता से आज तक किसी ने काम नहीं किया, जबकि हमारे प्रदेश में हर दो व्यक्तियों पर एक गौवंश है। मुझे जबलपुर के मशहूर साहित्यकार हरिशंकर परसाई जी द्वारा लिखी प्रसिद्द लाईन याद आ रही कि पूरी दुनिया में गाय दूध देती है , लेकिन भारत में गाय वोट देती है। लेकिन हमारे प्रदेश में अब ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगी। 19वीं पशुगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ में डेढ़ करोड़ मवेशी हैं। इनमें से 98 लाख गौवंश हैं। इनमें से 48 लाख बछवा या बैल है और 50 लाख गायें है। 50 लाख गायों में भी केवल 31 लाख दूध देने योग्य हैं. यानी 70 लाख गौवंश का कोई उपयोग नहीं हो रहा है। गोधन न्याय योजना इस दिशा में उठाया गया ठोस कदम है। पशुपालकों की आय में वृद्धि। पशुधन खुले में चराई पर रोक। जैविक खाद के उपयोग को बढ़ावा एवं रासायनिक उर्वरक उपयोग में कमी लाना। खरीफ एवं रबी फसल सुरक्षा एवं द्धिफसलीय क्षेत्र विस्तार। स्थानीय स्व सहायता समूहो को रोजगार के अवसर। भूमि की उर्वरता में सुधार। विष रहित खाद्य पदार्थो की उपलब्धता एवं सुपोषण।
ग्रामीण के साथ साथ शहरी क्षेत्रों में ’’गोधन न्याय योजना’’ के क्रियान्वयन हेतु दिशा-निर्देश
शहरी क्षेत्रों में गोधन न्याय योजना का प्रमुख उद्देश्य एकीकृत व्यवस्था के साथ सड़क में घूमने वाले पशुओं के नियंत्रण, खेत एवं बाड़ियों हेतु उच्च गुणवत्ता के जैविक खाद की उपलब्धता, शहरी स्वच्छता के माडल को सुदृढ़ करते हुये पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ पशुपालन से उत्सर्जित अपशिष्ट से होने वाली बीमारियों के बचाव हेतु अपशिष्ट का वैज्ञानिक निपटान किया जाना है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु योजना में कार्यरत् शहरी गरीब परिवारों के आर्थिक एवं सामाजिक उन्नयन हेतु शहरी क्षेत्रों में गोबर का क्रय एवं गोबर से निर्मित गुणवत्ता युक्त वर्मी कम्पोस्ट खाद का विक्रय तथा गौठान समिति को आत्मनिर्भर बनाया जाना है। इस योजना के क्रियान्वयन में मितव्यवता एवं उपलब्ध अधोसंरचना की क्षमता का अधिकाधिक उपयोग, पूंजीगत व्यय में कमी, अन्य व्यवस्थाओं की दृष्टिकोण में निकाय में क्रियान्वयित स्वच्छ भारत मिशन से वित्त पोषित राज्य प्रवर्तित मिशन क्लीन सिटी के साथ (अभिसरण) कनवरजेंस किया जाना प्रस्तावित है।